प्यार से पीठ पर घाव करते है
और एक हम है जो
उनके दिया घावो को प्यार करते है
पहले तो
अमन के नाम पर दुश्मन को घुसपैठ करते है
और बाद में
अपनों को बचने की जुगत लगते है
सीमा की सुरक्षा के नाम पर
जवानों की बलि चढ़ जाती है
और स्वर्ग रूपी कश्मीर घाटियों में
खून की नदी बह जाती है
आधी शताब्दी से चाहा है हमने सुख चैन
पर अब लगता है
जवानों की सीमा पर पक्की हो गयी है रैन
क्यों न हम एक बार में ही जेट ले साड़ी बाजी...
ताकि उन्हें रोज़ रोज़ न करना पड़े
अपने आला-कमान को राज़ी.............
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