Thursday, February 11, 2010

Poem

होश में आया तो जिंदगी निकल रही थी
मनो रख भी जैसे चिंगारी उगल रही थी

भेजा घूमा डिस्को से आकर
अब जागे एक्साम्स सर पे पाकर

गिनती चालू हुई पालो में
निकली साडी कोफ़ी नालो में

सोने के जो थे धुनधते मौके
जागने का उन्हें शौक चढ़ा

जिस टोपिक से वो थे घबराते
उन पर सारा गौर पड़ा

रंगों का जो शौक थे रखते
मन कला अक्षर खूब चढ़ा

टीचर जिनसे हम बैर थे रखते
कदमो में उनके अब सर बढ़ा

बात बात पर लड़ने वाले
आज खुद से तू खूब लड़ा

विश्व विजयी जब बनते साले
अब उल्लू का सा विशेषण जडा

क्लास में थे बडबोले बनते
अब देखो कैसे चुप खड़ा

मैं खूब पढ़ा ये सब है कहते
पर अब सब पर भारी पड़ा

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