मनो रख भी जैसे चिंगारी उगल रही थी
भेजा घूमा डिस्को से आकर
अब जागे एक्साम्स सर पे पाकर
गिनती चालू हुई पालो में
निकली साडी कोफ़ी नालो में
सोने के जो थे धुनधते मौके
जागने का उन्हें शौक चढ़ा
जिस टोपिक से वो थे घबराते
उन पर सारा गौर पड़ा
रंगों का जो शौक थे रखते
मन कला अक्षर खूब चढ़ा
टीचर जिनसे हम बैर थे रखते
कदमो में उनके अब सर बढ़ा
बात बात पर लड़ने वाले
आज खुद से तू खूब लड़ा
विश्व विजयी जब बनते साले
अब उल्लू का सा विशेषण जडा
क्लास में थे बडबोले बनते
अब देखो कैसे चुप खड़ा
मैं खूब पढ़ा ये सब है कहते
पर अब सब पर भारी पड़ा
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