बिखरी यादो को संजोता हूँ
रात के अंधियारे में
उन्हें अपने सिरहाने रख कर सोता हूँ
कभी कभी अपने सपनों से लौटता हूँ
तो उनसे पूछता हूँ .....
ये तृष्णा दी तुने सिर्फ मुझे
या तुम सबके अरमानो को
पानी पानी करते हो..
क्या सभी तुमसे यही सवाल करते हैं
जो अक्सर मैं किया करता हूँ
क्या सभी डरते हैं
तुम्हारी आजमाइश से
या तुम्हारा कड़वा घूँट
सिर्फ मैं ही पिया करता हूँ...
क्या सभी जल जाते हैं
जलती शमा क़ि
एक छोटी सी लौ क लिए
या हर रात वो परवाना
मैं ही हुआ करता हूँ..
क्या सभी रखते हैं
दिल में एक कोना तुम्हारे लिए
कभी हंसते कभी रोते
या फिर हर पल
वो बावरा मैं ही हुआ करता हूँ .....
अमेय
KUCH NAGAME
Tuesday, August 16, 2011
vipada
अल्फाज़ नहीं मेरे अश्क कहेंगे
बीती बाते हर वक़्त कहेंगे
छु कर दामन मेरे दिल का
सब तेरे दिल को सख्त कहेंगे
अगर रो दूं मैं तेरी यादो में खो कर
सब जख्म-ऐ-मलहम वक़्त कहेंगे
हंस लू अगर मैं भुला कर तुझको
लोग मुझे अपशब्द कहेंगे
मेरे दिल क़ि विपदा अब ज्यादा
क्या इसी को साँसे जप्त कहेंगे
अल्फाज़ नहीं मेरे अश्क कहेंगे
बीती बाते हर वक़्त कहेंगे ...
अमेय
बीती बाते हर वक़्त कहेंगे
छु कर दामन मेरे दिल का
सब तेरे दिल को सख्त कहेंगे
अगर रो दूं मैं तेरी यादो में खो कर
सब जख्म-ऐ-मलहम वक़्त कहेंगे
हंस लू अगर मैं भुला कर तुझको
लोग मुझे अपशब्द कहेंगे
मेरे दिल क़ि विपदा अब ज्यादा
क्या इसी को साँसे जप्त कहेंगे
अल्फाज़ नहीं मेरे अश्क कहेंगे
बीती बाते हर वक़्त कहेंगे ...
अमेय
Friday, March 4, 2011
kuch to baki hai
हो चली है रात आधी
पर कहीं जाना अभी भी बाकि है
थक चुके हैं दिन भर क़ि भाग दौड़ से
पर अभी भी आँखों में नींद आधी है
आज दिन के उजाले का एहसास तो है
पर अभी भी रात का ख्वाब बाकि है
खड़े तो हो चले हैं पैरो पर अपने
पर अभी भी मजबूर आभास बाकि है
ऊब चुके हैं दुनिया क़ि इन दलीलों से
पर जीने क़ि तमन्ना अभी भी बाकि है
पूरी हो चुकी है हसरत सारी
पर अभी भी दिल पर कोई बोझ बाकि है
लिख तो लिए हैं एहसास सारे
पर अभी भी कुछ जज्बात बाकि है
अमेय पाण्डेय
Sunday, October 17, 2010
मैं मन ही मन घबराने लगता
फिर व्याकुल हो जाता हु
तुजसे मिलने क़ि खातिर मैं
फिर आतुर हो जाता हु
चहरे पर तेज बयां होने पर भी
मैं नाज़ुक हो जाता हु
तब फिर तब से चित है डोलने लगता
और तुझसे न कह पता हु
तुझसे दिन क़ि शुरुआत नहीं पर
तेरी यादों में रात बिताता हु
तू अंखियों से एक इशारा कर दे
मैं रब से यही मनाता हु
मैं मन ही मन घबराने लगता
फिर व्याकुल हो जाता हु
अमेय पाण्डेय
Saturday, March 6, 2010
ASHIQUI
CHOTE DIN HAIN AUR CHOTI HAIN RAATE...
BAHUT HAIN ARMAAN AUR BAHUT HAIN BAATE
HAMSE DILLAGI KAR LO ABHI KYUN KI................
HAM JAISE ASHIQUE LAUT KAR NAHI AATE........
Friday, March 5, 2010
darde dil
रातो बिना सूरज क़ि इबादत कैसे होगी....
दुश्मनों बिना दोस्तों क़ि इनायत कैसे होगी.......
अच्छा हुआ जो वक़्त ने चेता दिया .........
वरना मीठी चुभन के बाद दर्द क़ि इजाजत कैसे होगी ............
Sunday, February 21, 2010
DHOKHE BAAJ PADOSI
एक वो है जो
प्यार से पीठ पर घाव करते है
और एक हम है जो
उनके दिया घावो को प्यार करते है
पहले तो
अमन के नाम पर दुश्मन को घुसपैठ करते है
और बाद में
अपनों को बचने की जुगत लगते है
सीमा की सुरक्षा के नाम पर
जवानों की बलि चढ़ जाती है
और स्वर्ग रूपी कश्मीर घाटियों में
खून की नदी बह जाती है
आधी शताब्दी से चाहा है हमने सुख चैन
पर अब लगता है
जवानों की सीमा पर पक्की हो गयी है रैन
क्यों न हम एक बार में ही जेट ले साड़ी बाजी...
ताकि उन्हें रोज़ रोज़ न करना पड़े
अपने आला-कमान को राज़ी.............
KUCH NAGME
तेरे बिन कहे तेरी आँखे पढ़ ली मैंने
बिना इजाजत तेरी साँसे मुट्ठी में भर ली मैंने
तेरा साथ पाकर हमने
एक और जिंदगी जी ली मैंने
२
होश में मदहोशी का है जमाना
तेरी आँखे है की शराब का पैमाना
दो घूंट हमने भी मार ली इसकी
अब तेरे प्यार का भर रहे है हर्जाना
BACHPAN
कागजो की नाव बना कर
हाथो से चप्पू चला कर
हम मानो आज हार गए
और बचपन की बाजी
ये समय हमसे मार गए
तलाशना चाहा हमने अपने बचपन को
मिटटी के घरोंदो के अन्दर
पर सच तो ये है की
मर चूका है हमारे अन्दर का बन्दर
सदैव अग्रसर बनकर भी
पीछे मुड़ने का दिल चाहता रहा
और बड़ा कहलाना कम परन्तु
छुटा बचपन ज्यादा सताता रहा
असंतोष इस बात का है की
आत्मा ज्ञान की तृप्ति हमने पहले पा कर भी
बेवकूफी में हमने जल्दी बड़े होने की कसम खा ली थी...
MANJIL
खड़े है इस मुकाम पर
की मंजिल नज़र आती है
रुके है ऐसे दोराहे पर
अब राह चुनी नहीं जाती है
खुद को मानने को बच्चा
तैयार नहीं थे हम कभी
अब जिम्मेदार बड़प्पन से
आँखे शरमा जाती है
ताने लगती थी नसीहते
बड़ो की कभी
अब यकायक वाही नसीहते
हमें संभाल जाती है
जीवन मूल्यों को
किताबो के अक्षर मात्र समझते थे हम
अब समझे की इन्हें पाने में
जिंदगी निकल जाती है
सोच न थी की कर्त्तव्य समझ बैठे
माँ बाप की मेहनत को
आज उनकी हर हरकत में
निस्वार्थ पवित्रता नज़र आती है
मंजील नज़र आती है
ROMANI KAVITA
मद मस्त फिज़ाओ से बह कर
एक शोख महक सी आई है
उन यादो में फिर खोया हु
पर दिल में तो तन्हाई है
साँसों से नर्मल तेरी खुशबू
मेरे रोम रोम में समाई है
उन यादो में फिर खोया हु
पर दिल में तो तन्हाई है
तेरे अधरों की जो लाली है
उगता सूरज तेरी परछाई है
उन यादो में फिर खोया हु
पर दिल में तो तन्हाई है
बारिश की बूंदे फिर थमने लगी
जैसे तू फिर शरमाई है
उन यादो में फिर खोया हु
पर दिल में तो तन्हाई है
इन्द्र धनुष अब बना है नभ में
पर चमक तेरी चुराई है
उन यादो में फिर खोया हु
पर दिल में तो तन्हाई है
तुझसे मिलने को उत्सुक हु
समय ने फिर कथा दोहराई है
उन यादो में फिर खोया हु
पर दिल में तो तन्हाई है
Thursday, February 11, 2010
Poem
क्या लिखूँ
कुछ जीत लिखू या हार लिखूँ
या दिल का सारा प्यार लिखूँ ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
कुछ अपनो के ज़ाज़बात लिखू या सापनो की सौगात लिखूँ ॰॰॰॰॰॰
मै खिलता सुरज आज लिखू या चेहरा चाँद गुलाब लिखूँ ॰॰॰॰॰॰
वो डूबते सुरज को देखूँ या उगते फूल की सान्स लिखूँ
वो पल मे बीते साल लिखू या सादियो लम्बी रात लिखूँ
मै तुमको अपने पास लिखू या दूरी का ऐहसास लिखूँ
मै अन्धे के दिन मै झाँकू या आँन्खो की मै रात लिखूँ
मीरा की पायल को सुन लुँ या गौतम की मुस्कान लिखूँ
बचपन मे बच्चौ से खेलूँ या जीवन की ढलती शाम लिखूँ
सागर सा गहरा हो जाॐ या अम्बर का विस्तार लिखूँ
वो पहली -पाहली प्यास लिखूँ या निश्छल पहला प्यार लिखूँ
सावन कि बारिश मेँ भीगूँ या आन्खो की मै बरसात लिखूँ
गीता का अॅजुन हो जाॐ या लकां रावन राम लिखूँ॰॰॰॰॰
मै हिन्दू मुस्लिम हो जाॐ या बेबस ईन्सान लिखूँ॰॰॰॰॰
मै ऎक ही मजहब को जी लुँ ॰॰॰या मजहब की आन्खे चार लिखूँ॰॰॰
कुछ जीत लिखू या हार लि
Poem
खुशियों का आना जाना है
कुछ पा चुके कुछ पाना है ......
थोडा सा जीवन जी चुके पर
थोडा सा मन को भाना है...
खुशियों का आना जाना है
कुछ पा चुके कुछ पाना है ......
दिन तो पूरा बीत गया पर
मन शमा का परवाना है
खुशियों का आना जाना है
कुछ पा चुके कुछ पाना है ......
अग्नि क़ि तपन को झेल चुके पर
शीतल जल का बहाना है.......
खुशियों का आना जाना है कुछ पा चुके कुछ पाना है ......
सुख का ढोंग रचा चुके पर
दिल गम का पैमाना है
खुशियों का आना जाना है कुछ पा चुके कुछ पाना है ......
गोरे तन को दिखा चुके पर
मन कला छुपाना है
खुशियों का आना जाना है कुछ पा चुके कुछ पाना है ......
Poem
होश में आया तो जिंदगी निकल रही थी
मनो रख भी जैसे चिंगारी उगल रही थी
भेजा घूमा डिस्को से आकर
अब जागे एक्साम्स सर पे पाकर
गिनती चालू हुई पालो में
निकली साडी कोफ़ी नालो में
सोने के जो थे धुनधते मौके
जागने का उन्हें शौक चढ़ा
जिस टोपिक से वो थे घबराते
उन पर सारा गौर पड़ा
रंगों का जो शौक थे रखते
मन कला अक्षर खूब चढ़ा
टीचर जिनसे हम बैर थे रखते
कदमो में उनके अब सर बढ़ा
बात बात पर लड़ने वाले
आज खुद से तू खूब लड़ा
विश्व विजयी जब बनते साले
अब उल्लू का सा विशेषण जडा
क्लास में थे बडबोले बनते
अब देखो कैसे चुप खड़ा
मैं खूब पढ़ा ये सब है कहते
पर अब सब पर भारी पड़ा
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